Skip to main content

क्या आप भी फ़ेसबुक चेक न कर पाएं तो हो जाती है टेंशन? केसे पाए टेंशन से छुटकारा जानिए

Image result for facebook.
आज आपके कितने सोशल मीडिया अकाउंट हैं?

फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, स्नैपचैट, वीचैट. व्हाट्सऐप...और भी कई...
आप इन्हें दिन में कितनी बार चेक करते हैं. नए मैसेज, लाइक्स, रिप्लाई या कमेंट को देखने के लिए आप ये सोशल मीडिया अकाउंट कई बार खोलते होंगे.

कई बार ऐसा होता है कि आपको मौक़ा नहीं मिलता कि आप फ़ेसबुक या ट्विटर की फ़ीड चेक कर सकें. ऐसे में आपको टेंशन हो जाती होगी.
वैसे आप अकेले नहीं हैं. पूरी दुनिया में बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्हें सोशल मीडिया की लत लग गई है. वो अगर सोशल मीडिया अकाउंट चेक नहीं करते तो बेचैन हो जाते हैं.
मनोवैज्ञानिक इसे अब एक लत, एक बीमारी मानने लगे हैं. सोशल मीडिया की लत के शिकार लोग अब बाक़ायदा इससे पीछा छुड़ाने के लिए विशेषज्ञों की मदद ले रहे हैं.
इसे 'डिजिटल डिटॉक्स' का नाम दिया गया है. यानी डिजिटल ज़हर से मुक्ति
ये लत छुड़ाने के लिए लोग तरह-तरह के नुस्खे आज़मा रहे हैं. एक्सपर्ट इस काम में सोशल मीडिया की लत के शिकार लोगों की मदद कर रहे हैं.
अमरीका में तो कई मनोवैज्ञानिक इसके लिए डेढ़ सौ डॉलर प्रति घंटे यानी दस हज़ार रुपए या इससे ज़्यादा फ़ीस वसूल रहे हैं. लंबे सेशन के लिए तो पांच सौ डॉलर प्रति घंटे तक की फ़ीस ले रहे हैं.
मामला ही इतना गंभीर है. आज सोशल मीडिया की लोगों को ऐसी लत लग रही है, जो शराब या दूसरे नशे की लत से भी भयानक है.
अमरीका के न्यूपोर्ट बीच शहर में ऐसी सेवाएं देने वाली पामेला रटलेज कहती हैं कि वो लोगों को तमाम तरह के सबक सिखाती हैं. उन्हें तैराकी सिखाती हैं. ड्राइविंग सिखाती हैं. मगर होता ये है कि लोग सब काम छोड़कर फोन लेकर सोशल मीडिया पर एक्टिव हो जाते हैं.
Image result for facebook.
अमरीका के ह्यूस्टन शहर के थेरेपिस्ट नैथन ड्रिस्केल कहते हैं कि पिछले कुछ सालों में सोशल मीडिया की लत की बीमारी तेजी से बढ़ी है. उनके पास इससे छुटकारा पाने के लिए आने वालों की तादाद भी काफी बढ़ी है.

ये रफ्तार सालाना बीस फीसद की दर से बढ़ रही है. यानी सोशल मीडिया की लत बड़ी तेजी से महामारी बनने की तरफ बढ़ रही है.
नैथन बताते हैं कि पहले लोग वीडियो और कंप्यूटर गेम की लत से पीछा छुड़ाने की सलाह मांगने आते थे. अब ये सिलसिला कम हुआ है.
फिलहाल तो डॉक्टर सोशल मीडिया की लत को कोई बीमारी नहीं मानते. लेकिन नैथन जैसे कई डॉक्टर ऐसे हैं, जो इसे दिमागी बीमारी मानकर उन्हीं नुस्खों से इसका इलाज करते हैं.
नैथन मानते हैं कि फेसबुक, ट्विटर और स्नैपचैट से हमारे दिमागी सुकून में काफी खलल पड़ता है. इसका इलाज इतना आसान नहीं. नैथन कहते हैं कि शराब की लत छुड़वाना आसान है. ड्रग की लत छुड़वाना भी इतना मुश्किल नहीं, जितना सोशल मीडिया का एडिक्शन.
नैथन ड्रिस्केल की एक घंटे की फीस 150 डॉलर यानी करीब दस हजार रुपए है. और मरीज को उनसे करीब छह महीने तक इलाज कराना होता है, तब जाकर सोशल मीडिया की लत से छुटकारा मिलता है.
क्या आप फ़ोन पर बात करने से डरते हैं?
दिलचस्प बात ये है कि हमेशा ऑनलाइन रहने की लत से छुटकारा दिलाने के लिए कई ऑनलाइन सुविधाएं भी शुरू की गई हैं.
मसलन, न्यूयॉर्क की कंपनी टॉकस्पेस (Talkspace) ने अपने नेटवर्क से करीब एक हजार थेरेपिस्ट जोड़े हैं. ये लोगों को सोशल मीडिया की लत छुड़ाने में ऑनलाइन मदद मुहैया कराते हैं. इनका 12 हफ्ते का कोर्स होता है.
ये कंपनी टेक्स्ट मैसेज के जरिए लोगों की मदद करती है. इसके लिए वो 138 डॉलर महीने की फीस वसूलती है. ऑनलाइन एक्सपर्ट से बात करने के लिए कंपनी करीब 400 डॉलर वसूलती है. जो सोशल मीडिया के मरीज हैं, वो अपने स्मार्टफ़ोन के ज़रिए ही अपना इलाज करते हैं.
फ़ोन पर ही उन्हें फ़ोन कम इस्तेमाल करने के तरीक़े बताए जाते हैं.
कंपनी की प्रमुख लिंडा कहती हैं कि बहुत से लोग पहले तो खुद से ही सोशल मीडिया की लत पर क़ाबू पाने की कोशिश करते हैं. नाकाम रहने पर वो उनकी कंपनी की ऑनलाइन सुविधा का रुख़ करते हैं.
वैसे कुछ जानकार ऐसे भी हैं, जिन्हें लगता है कि सोशल मीडिया की लत दफ्तर की एक चुनौती की तरह देखी जानी चाहिए. इसी तरह इसका इलाज भी होना चाहिए.
लंदन में ओरियाना फील्डिंग, डिजिटल डिटॉक्स कंपनी चलाती हैं. उनकी कंपनी, कई कंपनियों के कर्मचारियों को सोशल मीडिया की लत छुड़ाने में मदद करती है.
उनके लिए वर्कशॉप आयोजित करती है. फिर जो ज़्यादा बीमार हैं, उनके लिए ऑनलाइन हेल्प मॉड्यूल मुहैया कराए जाते हैं. इसके लिए ओरियाना रोज़ाना 748 डॉलर या करीब पचास हज़ार रुपए की फ़ीस वसूलती हैं.
कुछ जानकार कहते हैं कि आप सोशल मीडिया की लत छुड़ाने के लिए सिर्फ एक्सपर्ट के भरोसे न रहें. सिर्फ वीकेंड पर या एक हफ्ते के कोर्स से बात नहीं बनने वाली. आप कुछ दिनों में फिर से उसी आदत के शिकार हो जाएंगे. नैशन ड्रिस्केल कहते हैं कि आप कुछ दिन स्मार्टफ़ोन से दूरी बनाएं. क़ुदरती माहौल में वक़्त गुज़ारें. इससे आपको काफ़ी मदद मिलेगी.

Comments

Popular posts from this blog

The top 10 events of world history april flower!

 In this article we are going to talk about april flower events! By the way, there is no need to work very hard to find this topic because on this day everyone tries to make each other an april flower. The first date of April is celebrated as Fool's Day. That too worldwide! Although there is a delay in the month of April, but today we are going to talk about the April flower events before that, with the help of which you can come up with ideas and you can make others April flowers Well, this is just a matter of fun but today we will talk about some of the fun events of history that took place on the day of April Fool! So let's know! 01 When the tradition of april flower started! Symbolic photo There is a lot of belief about how the tradition of celebrating April Fool's Day on the first day of April began, but the popular belief is that this practice originated in medieval France. The reason for this was the Gregorian calendar, prepared by Christianity's Pop Gregory 13, ...

स्मार्टफोन का पासवर्ड भूल गए हैं तो डरें नहीं, ऐसे करें अनलॉक

स्मार्टफोन का पासवर्ड भूल गए हैं तो डरें नहीं, ऐसे करें अनलॉक

जायफल: स्वादिष्ट मसाले का खून भरा इतिहास

जायफल: स्वादिष्ट मसाले का खून भरा इतिहास आज हम ऐसे मसाले की बात करने वाले हैओ जिसे आम तौर ख़िर में छिड़का जाता है । जी हाँ , जायफल की ! आपको शायद ताजुब्ब होगा कि ज्यादातर लोग शायद इसकी उत्पत्ति के बारे में विशेष रूप से कुछ नही जाने हैं ।समें कोई संदेह नहीं है – यह सुपरमार्केट में मसाला गलियारे से आता है, है ना? लेकिन इस मसाले के पीछे दुखद और खूनी इतिहास छुपा छह है । लेकिन सदियों से जायफल की खोज में हजारों लोगों की मौत हो गई है। जायफल क्या है? सबसे पहले हम जानते है कि आखिर ये जायफ़ल है क्या ? तो ये नटमेग मिरिस्टिका फ्रेंगनस पेड़ के बीज से आता है । जो बांदा द्वीपों की लंबीसदाबहार प्रजाति है जो इंडोनेशिया के मोलुकस या स्पाइस द्वीप समूह का हिस्सा हैं। जायफल के बीज की आंतरिक गिरी को जायफल में जमीन पर रखा जाता है ।जबकि अरिल (बाहरी लेसी कवर) से गुदा निकलता है। जायफल को लंबे समय से न केवल भोजन के स्वाद के रूप में बल्कि इसके औषधीय गुणों के लिए भी महत्व दिया गया है। वास्तव में जब बड़ी मात्रा में जायफल लिया जाता है तो जायफल एक ल्यूकोसिनोजेन है जो मिरिस्टिसिन नामक एक साइकोएक्टिव केम...