बैंकिंग उद्योग आठ लाख करोड़ रुपये से ज्यादा एनपीए होने के कारण परेशान है। इस एनपीए में से छह लाख करोड़ रुपये सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का है। आरबीआइ ने कहा है कि इनसॉल्वेंसी एंड बैंक्रप्सी कोड (आइबीसी) के तहत तत्काल कार्रवाई के लिए इन 12 खातों को उपयुक्त माना गया है। हालांकि आरबीआइ ने इन बैंक खातों के डिफॉल्टरों के नाम नहीं बताये हैं।
देश के बैंकों के सामने इस वक्त सबसे बड़ी समस्या एनपीए की है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि किसी बैंक का फंसा हुआ कर्ज किस स्थिति में एनपीए की श्रेणी में आ जाता है। हम अपनी खबर में आपको यही बताने की कोशिश करेंगे।
क्या होता है एनपीए:
NPA (नॉन परफार्मिंग एसेट्स) को सामान्य भाषा में फंसा हुआ कर्ज (गैर निष्पादित आस्तियां) कहा जाता है। एनपीए ऐसी रकम है जो बैंकों द्वारा ऋण के रूप में दी जाती है लेकिन इसके वापस आने की संभावना नहीं होती। देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने आरबीआई के सामने बैड बैंक का प्रस्ताव रखा था।
कब लोन बन जाता है एनपीए:
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के मुताबिक जब किसी लोन की ईएमआई, प्रिंसिपल अमाउंट या इंटरेस्ट (ब्याज) ड्यू डेट के 90 दिन के भीतर नहीं आता है तो उसे एनपीए की श्रेणी में डाल दिया जाता है। हालांकि एग्री और फॉर्म लोन के संदर्भ में एनपीए की परिभाषा अलग तरीके से तय की गई है....
एनपीए निम्नानुसार परिभाषित है: अल्प अवधि के लिए फसल कृषि ऋण जैसे कि धान, ज्वार, बाजरा आदि के मामले में अगर 2 फसल सीजन के लिए ऋण (किस्त/ब्याज) का भुगतान नहीं किया गया है, तो इसे एनपीए माना जाएगा। वहीं लंबी अवधि की फसलों के लिए 1 फसल का मौसम बीत जाने के बाद तक अगर लोन की राशि का भुगतान नहीं हुआ है तो भी वह एनपीए कहलाएगा।
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